Arpita Garud
Friday, July 8, 2022
Ijazat 2
35 years of this masterpiece #Ijazat by #gulzar
क्या होता अगर सुधा और महेन्दर अलग नहीं होते..... शायद ऐसा होता....
#ijazat2 की मेरी कल्पना ..........
दिवाली आने वाली थी। इस बार की दिवाली दिवाली हर साल से अलग थी पर सुधा नहीं चाहती थी कि त्यौहार मायूसी के साथ मनाया जाये। वो चाहती थी रोहन को वो सारी खुशियां देना जो शायद आज महेन्दर ज़िन्दा होता तो रोहन को दे पाता।
महेन्दर को गये सात महीने हो गये मगर एक दिन भी ऐसा नहीं जाता था जब रोहन की गैर मौजूदगी में सुधा की आँखों से और आंसू ना छेलकते हो।
रोहन स्कूल से लौटा तो उसने सुधा को स्टोररूम की सफाई करते देखा अपना बैग सोफे पर ही रखकर वो स्टोररूम में गया।
रोहन: माँ आज आप स्कूल नहीं गयी? सुधा: नहीं दो दिन की छुट्टी ली है। दिवाली आने वाली है बहुत कम दिन है। रोहन : ओह चलों में भी Help कर देता हूँ,
सुधा:नहीं तू Fresh हो जा मैं खाना लगाती हूँ।
सुधा Kitchen में गई और रोहन को Store Roomमें इतना सारा पुराना सामान देखकर उत्सुकता हुई वो बडे कौतुहल से पुरानी poetry Books,
Paint Brushes देखकर खुश हुआ| थोडा आगे बढ़ा तो दायीं ओर एक बड़ा ड्रम था जिस पर महिन्दर की photo एक frame में लगी हुई थी. "papa की photo store में क्यूं रखी है?
रोहन सोचने लगा और जैसे ही उसने वो frame उठायी वो उसके हाथ से फिसल कर गिर गयी।
सुधा : (किचनसे) रोहन: क्या गिरा रोहन ? कुछ नहीं मां, सब ठीक है। सुधा: तू जल्दी आ, खाना गरम हो गया है।
रोहन: हां माँ, बस दो मिनट
रोहन डर गया उसने जल्दी से नीचे गिरे टूटे हुए कांच के टुकडे उठाना शुरू किया। अचानक उसकी नजर एक Folded paper पर पड़ी जो
frame के अन्दर photo के पीछे छिपा था। रोहन ने उसे खोलकर देखा तो वो एक चिठ्ठी थी।
महेन्दर के लिये लिखी हुई माया की चिट्ठी । रोहन ने फटाफट कांच के टुकड़े समेटे, और चिठी पॉकेट में रख ली और Kitchen की ओर दौडा ।
जल्दी से खाना खा कर रोहन अपने कमरे में गया और दरवाजा बंद कर लिया।
इसे अचानक क्या हुआ? ये सोचते सोचते सुधा फिर स्टोर रूम में चली गयी।
यहाँ रोहन ने वो Letter पढना शुरू किया -
प्रिय महेन,
Kaise ho, haan maloom hai mujhe, jaisi Mai hoon waise toh bilkul nahi ho tum.
Tumhare bina jitni bezar Meri kaifiyat hoti hai tum shayad utne hi khush hote ho.
Sochte honge chalo kuch din ke liye peechha chhoota.
Shikayat nahi Kar rahi hoon magar thodi naraz hoon. Tum, bina bataye Jo chale Gaye. Mister jab Mai jaungi na toh dhoondhte rah jaoge.
Mahinder, tumhe yaad hai?? us din Craft fair me tumne mere liye blue pottery set liya tha.. Aaj ilaychi wali chai pi rahi hoon usi cup me... Tum jaldi aa jao us set se doosra cup bhi nikalna hai mujhe....
Tumhari 'Maya'
ये चिठ्ठी पढते ही रोहन का के गुस्से का पारा चढ़ गया
पापा ऐसा कैसे कर सकते हैं? माँ तो उन्हें कितना प्यार करती है। नहीं मैं मां को नहीं बताऊँगा यही सोचते हुए वह अपने दोस्त राहुल के घर चला गया।
मगर राहुल के घर भी रोहन का मन कँहा लग रहा था कुछ देर बाद रोहन फिर घर आ गया। अपनी माँ से नजरे नहीं मिला पा रहा था रोहन इसिलिए सीधे अपने रूम में जाकर Laptop on करके बैठ गया जैसे तैसे शाम हुई और सुधा ने आवाज लगायी - रोहन कहाँ हो? क्या बात है आज पूरे दिन रूम में? Exams तो दूर है अभी फिर इतनी Serious studies? सुधा ने हंसते हुए तंज़ कसा। रोहन के सुरक्षा से सुधा को अनदेखा करते हुए अपने कमरे से बाहर निकला और से फिर Kichen में जाकर Fridge se पानी की bottle निकाली और पानी पीने लगा कि अचानक उसकी नजर Blue pottery vase पर गयी बाहर आकर उसने सुखा से पूछा " माँ ये इतना सुन्दर Vase कब लायी ?"
सुधा: "अरे ये दोपहर को स्टोर की सफाई कर रही थी ना, वहीं मिला। तुम्हारे पापा को Bhue Portrey बहुत पसंद थी। कहकर वो मुस्कुराई और राहुल का पारा और चढ गया और वो गुस्से से फटाफट खाने के लिए कुछ ढूंढने लगा। सुधा कुछ समझ ना पायी मगर उसे ये पता चल गया था कि रोहन किसी बात से नाराज है। सुधा ने रोहन का हाथ पकड़ा और पूछा " क्या बात है रोहन ? किस बात की नाराजगी है? Mood क्यूं खराब है तुम्हारा?
रोहन ने दिन भर जिस गुस्से को दबा रखा था वो अचानक फट पडा।
रोहन: "कुछ नहीं जानती मां, बहुत भोली हो आप | जिनको आप दिन रात याद करती रहती हो ना उन्होंने आपको धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया अब सुधा से रहा नहीं गया और उसने रोहन को जोर से थप्पड लगाया।
रोहन के तेज गति से अपने कमरे की तरफ बढ़ा और सुधा उसके पीछे पीछे भागने लगी।
"रोहन रुक जा, तुझे समझ नही जरा सी भी ? अपने पापा के बारे में कोई इस तरह की बात करता है?
रोहन: मुझे पता था आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं होगा। मगर कब तक आप ऐसे इंसान को याद करके रोती रहोगी? ये लो "
रोहन ने वो ख़त सुधा को दिया
उस को खत पढ़ते सुधा की आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी।
रोहन से रहा नहीं गया और वो सुधा को लिपट गया।
सुधा : तुझे ये चिट्ठी कहा मिली ?
रोहन: Store room में photo frame के अंदर छिपी हुई थी।
सुधा: किसी और की चिट्ठी यूं पढ़ना गलत है ना रोहन
रोहन: मां, तुम अब भी मुझे ही डांट रही हो ?
सुधा: हां, क्योंकि, यूं चोरी से चिट्ठी पढने से तूने इतने प्यारे इंसान पर शक किया। माया उनका पहला प्यार थी। महेन्दर जब तेरे दादाजी से मिलने आये तब माया के बारे में बताने ही वाले थे कि उससे पहले ही दादाजी ने उन्हें अपनी तबियत का वास्ता देकर मुझसे शादी करने को मना लिया।
महेन्दर जब वापिस शहर आके माया को फोन किया तो माया की phone किया तो एक हफ्ते तक उसने phone नहीं उठाया, फिर उन्होंने माया के office जाकर पता किया तो पता चला कि माया Hospital में admit है। कैंसर की आखिरी Stage पर थी वो। महेन और माया एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। माया एक free spirit लडकी थी जिसे poetry और painting का बहुत शौक था।
महेंदर ने शादी से पहले ही मुझे सब कुछ बताया था।
हमारी शादी के बाद जब उसका painting brushes और poetry books घर में देख सी तो बडी जलन होती थी मगर महेन्दर ने मेरे लिए अपने प्यार में कोई कमी नहीं रखी। एक दिन जब महिन्दर को पता चला कि माया की चीजों को देखकर मुझे गुस्सा आ जाता है, उन्होंने माया का एक खत मुझे पढने को कहा। इतना प्यार और पागलपन था उस खत में कि मेरे आँखों से आंसू निकलने लगे।
हमारी शादी के एक महिने पहले ही Maya इस दुनिया से जा चुकी थी।
Rohan : sorry मां। मैं कितना Stupid और Lucky हूं कि मुझे इतने प्यारे parents मिले।
सुधा ने Rohan की मुस्कुराते हुए गले " लगा लिया।
#storyteller #arpitawafa
Thursday, December 21, 2017
Kuch bhi to Nahi badla
Thodi moti Ho gayi hai,
Sunahare Baalon Pe ab
Chandi cha gayi hai,
Baaki Kuch bhi to Nahi Badla, muskurahat ki lakeeren badh gayi hai, Aankhe Thodi chhoti Ho gayi hai,
Baaki Kuch bhi to Nahi Badla,
wo chanchal Aankhe
ab bhi Sharm se jhukti hai,
baat zubaan Pe aate aate
ab bhi rukti hai,
Baaki Kuch bhi to Nahi badla
Gali ke mod Pe jiske
deedar ke liye lagte the chakkar,
ma ka haath batane ke Bahane
nukkad ki Dukan se late the
Kabhi dahi to Kabhi shakkar,
Wo hoor tab bhi thi door aur
Aaj bhi door hai,
Par Dekho Zara gor se
uske chehre Pe Aaj bhi wohi noor hai,
Jaanti thi wo mere dil ka haal tab bhi,
Jab Nazren Mili to khudbakhud
Ho gaya bayaan Aaj bhi,
Kash Usse Mai tab kah paata dil ki baat, shayad hote Aaj Hum bhi sath sath,
Uski aankhon me Aaj bhi
Bahut sawal hai,
jinka jawab Dena mere bas ki baat nahi, Chamakti aankho me wo hi sawal lekar, Shayad wo aa rahi hai yaheen,
Chandan, kahaan ho Tum, kahaan the Itne saal, Usne poocha,
Uski aankhon me doob gaya yoon,
ki Koi jawab na soojha,
Wo sawaalon ki ladiyaan lagati gayi, aur Mai bas dekhta raha ektak,
In sabhi sawalon ne chhoo liya
Mera antarman tak,
Phir jab Usne poocha,
kaunsi kaksha me hai Teri beti,
us waqt laga Kaash
zindagi ki cassette rewind Kar di hoti,
Apne bete se milwate hue
Badi khush nazar aa rahi thi,
Mere armaano ko choor choor karke
wo Aaj phir ja rahi thi...
Ek tarfa chahaton ka
shayad yahi hai Sila,
Sach me Kuch bhi to Nahi badla
Tuesday, September 3, 2013
baba tumhi aiktaaye na???
आठवत मला माझ , तुमच्या ऑफिस तुन परत येण्या आधिच
homework पूर्ण करायचं , आणि अभ्यास केला नाही अस,
खोटच तुम्हाला सांगुन माझ तुम्हाला surprise द्यायचं
रस्ता क्रॉस करण्या पासून मला
रस्त्या वर cycle चालवायला शिकवायचं
लढायला मला एकटच पाठवायचं
पण माझ्या माघे तुमचं ठाम उभ राहायचं
मी कधीच धरप डली नाही
तुम्ही होता पाठी शी
निरंतर पुढे वाहाढत राहिली काळजी होती नाही शी
मुलगी आहे घरी च बसवा
जेव्हां सगळे सांगायचे
मुलगी नाही, माझा मुलगा आहे
तुम्ही त्यांना म्हणायचे
जीवन पथ चे तुम्हीच मार्गदर्शक
कृष्ण तुम्ही, मी सब्यासाची
तुम्हीचं सांगा, तुमच्या विना मी
कशी गाडी हाकू या जीवनाची
वाट बघतीये तुमची आता
पूरात जीव फस्लये माझा
माझ्या पाठी वर हाथ फिरवायला , येताये न??
मी कशी एकटीच लढ्तीये , बघताये न ??
माझी हाक बाबा तुम्ही ऐक्ताये न ??
माझी हाक बाबा तुम्ही ऐकताये न ???
homework पूर्ण करायचं , आणि अभ्यास केला नाही अस,
खोटच तुम्हाला सांगुन माझ तुम्हाला surprise द्यायचं
रस्ता क्रॉस करण्या पासून मला
रस्त्या वर cycle चालवायला शिकवायचं
लढायला मला एकटच पाठवायचं
पण माझ्या माघे तुमचं ठाम उभ राहायचं
मी कधीच धरप डली नाही
तुम्ही होता पाठी शी
निरंतर पुढे वाहाढत राहिली काळजी होती नाही शी
मुलगी आहे घरी च बसवा
जेव्हां सगळे सांगायचे
मुलगी नाही, माझा मुलगा आहे
तुम्ही त्यांना म्हणायचे
जीवन पथ चे तुम्हीच मार्गदर्शक
कृष्ण तुम्ही, मी सब्यासाची
तुम्हीचं सांगा, तुमच्या विना मी
कशी गाडी हाकू या जीवनाची
वाट बघतीये तुमची आता
पूरात जीव फस्लये माझा
माझ्या पाठी वर हाथ फिरवायला , येताये न??
मी कशी एकटीच लढ्तीये , बघताये न ??
माझी हाक बाबा तुम्ही ऐक्ताये न ??
माझी हाक बाबा तुम्ही ऐकताये न ???
Wednesday, September 5, 2012
एक औरत की सफलता के पीछे एक बाई का हाथ होता है
आज मै बीमार हूँ, कमजोरी से लाचार हूँ
क्या करूं कुछ सूझता नहीं, मेरी परेशानी कोई बूझता नहीं
बॉस का फ़ोन, पति की किटकिट
फैला है घर में कूड़ा करकट
बर्तन मूह उठाये तकते है राहें
कब आकर उन्हें साफ़ करेंगी ये गोरी बाहें
Presentation की तैयारी या कुकिंग का विचार
Dinning टेबल पर पति देव कर राहें इंतज़ार
जैसे तैसे निकली घर से होकर मै तैयार
वहीं रास्ते में हो गयी puncture मेरी कार
ऑफिस पहुँचते ही जब मैंने बॉस की डांट खाई
सच कहूं उस समय मुझे तेरी बहुत याद आई
शाम को घर पहुंची, मै बड़ी थक हार
तभी श्रीमान जी ने पुछा..क्या है dinner का विचार???
आज का दिन बड़ा ग्रेट था, बॉस ऑफिस में आया लेट था
हमने फटाफट सारा काम निपटाया, मीटिंग में भी सबके सामने अपना परचम लहराया
आज हमारा मूड है बड़ा ही मस्तमोला, उस पर चार चाँद लगे अगर मिल जाये भटूरा और छोला
अपना दुखड़ा सुनकर मैंने आज बहाना बनाया
छोले घर में है नहीं, मैंने आज दाल और चावल ही बनाया
ये सुनकर पतिदेव ने भी छोटा सा मुँह बनाया
घर में झगडा, ऑफिस में झगडा, मुझे इतना मत सताओ
ओह मेरी निर्मला बाई कल से काम पे आ जाओ
तुम्हे याद करके दिल मन ही मन रोता है
सच है एक औरत की सफलता के पीछे एक बाई का हाथ होता है.
क्या करूं कुछ सूझता नहीं, मेरी परेशानी कोई बूझता नहीं
बॉस का फ़ोन, पति की किटकिट
फैला है घर में कूड़ा करकट
बर्तन मूह उठाये तकते है राहें
कब आकर उन्हें साफ़ करेंगी ये गोरी बाहें
Presentation की तैयारी या कुकिंग का विचार
Dinning टेबल पर पति देव कर राहें इंतज़ार
जैसे तैसे निकली घर से होकर मै तैयार
वहीं रास्ते में हो गयी puncture मेरी कार
ऑफिस पहुँचते ही जब मैंने बॉस की डांट खाई
सच कहूं उस समय मुझे तेरी बहुत याद आई
शाम को घर पहुंची, मै बड़ी थक हार
तभी श्रीमान जी ने पुछा..क्या है dinner का विचार???
आज का दिन बड़ा ग्रेट था, बॉस ऑफिस में आया लेट था
हमने फटाफट सारा काम निपटाया, मीटिंग में भी सबके सामने अपना परचम लहराया
आज हमारा मूड है बड़ा ही मस्तमोला, उस पर चार चाँद लगे अगर मिल जाये भटूरा और छोला
अपना दुखड़ा सुनकर मैंने आज बहाना बनाया
छोले घर में है नहीं, मैंने आज दाल और चावल ही बनाया
ये सुनकर पतिदेव ने भी छोटा सा मुँह बनाया
घर में झगडा, ऑफिस में झगडा, मुझे इतना मत सताओ
ओह मेरी निर्मला बाई कल से काम पे आ जाओ
तुम्हे याद करके दिल मन ही मन रोता है
सच है एक औरत की सफलता के पीछे एक बाई का हाथ होता है.
Tuesday, November 29, 2011
बाबा
उन्हात शीतल सावली
पावसात आमचे छत्र
अश्या माझ्या बाबांना
लिहिते आज मी पत्र
उभे तिकडे पलीकडे
बाबा आमचे किती भोळे
सर्व लपविले कष्ट आपुले
पण अश्रू नी भरले डोळे
आमच्या कंटक वाटेत
आपले हाथ पसरविले
आमच्या सुखा साठी
आपले दुख विसरले
बाबा मला द्या अधिकार
पित्ररून चुकविण्या चा
वया च्या या काळात
चक्षु तुमचे बनण्या चा
पावसात आमचे छत्र
अश्या माझ्या बाबांना
लिहिते आज मी पत्र
उभे तिकडे पलीकडे
बाबा आमचे किती भोळे
सर्व लपविले कष्ट आपुले
पण अश्रू नी भरले डोळे
आमच्या कंटक वाटेत
आपले हाथ पसरविले
आमच्या सुखा साठी
आपले दुख विसरले
बाबा मला द्या अधिकार
पित्ररून चुकविण्या चा
वया च्या या काळात
चक्षु तुमचे बनण्या चा
Wednesday, November 23, 2011
मेरा सपना: ये दिल मांगे मोर
कल रात को सोई थी मै
कुछ सपनो में खोयी थी मै
उन सपनो में एक सपना चुना
जिसे पलकों ने बड़े प्यार से था बुना
सपने में देखि एक नारी
बड़ी सुन्दर बड़ी प्यारी
उसके काँधे पर थी बच्ची
जिसकी उम्र थी कच्ची
मैंने पूछा उस नारी से
कौन हो तुम मुझे बताओ
नहीं कुछ भी मुझसे छुपाओ
वो बोली, मै हूँ ममता की मूरत
सच में वो थी बड़ी खूबसूरत
आँख खुली तो देखा, सामने वो नहीं थी
लेकिन मेरी अलार्म घडी तो वहीं थी
जब मै देख रही थी सपना, उस माँ ने बजाय था झुनझुना
वो झुनझुना नहीं, मेरी घडी का अलार्म था
मुझे आज सुबह बहुत ज़रूरी काम था
उठकर जब होने लगी मै तैयार
याद आया मुझे उस माँ का प्यार
जब मेरी माँ ने मुझे आवाज़ दी और कहा; नाश्ता है तैयार
नाश्ता करके जब निकाली मैंने अपनी कार, माँ ने मुझे विदा करते हुए दिया प्यार
कुछ दूर क्रोसिंग पर जब देखि बत्ती लाल
रुकी वहीं पर, कुछ देख मन हुआ बेहाल
जब देखी मैंने वाही सुन्दर स्त्री मेरे कार के पास
दिल बोला मै यहीं रुक जाऊं काश
क्या बताऊँ क्या अंतर था इसमें और उसमे, जिसे देखा था मैंने कल रात सपने में
वाही ममता की मूरत, बड़ी खूबसूरत
वही नारी, बड़ी सुन्दर बड़ी प्यारी
उसके काँधे पर भी थी बच्ची, उम्र जिसकी थी कच्ची
पर उसके हाथ में झुन्झूने की जगह टूटा हुआ पात्र था
जिसमे एक पचास पैसे का सिक्का मात्र था
उस पात्र को मेरी और बढ़कर कहने लगी, अब तक कुछ खाया नहीं शाम ढलने लगी
उसके साथ थे दो और बालक, पात्र उनके भी थे चकाचक
पर उसमे नहीं था एक भी पैसा, हाय किस्मत ने रचा खेल ये कैसा
कुछ भी नहीं था उनके पास ढकने को तन
मैंने कहा, मेरे पास भी है बर्तन
अगर सुबह शाम आप उन्हें साफ़ कर देंगी
तो मै दूँगी उतना, जितना आप कहेंगी
इतना सुनते ही वो आगे बढ़ गयी, मै भी अपनी कार में चढ़ गयी
इतने में बत्ती हो गयी नारंगी, उस औरत ने बजाई सारंगी
फिर उसने शुरू किया लोगों से मांगना, मै भी वहां से हुई रवाना
शाम को घर आकर मैंने बहुत सोचा, साथ ही उन लोगों को बहुत कोसा
जो देते है उन्हें पैसे होकर उनसे बोर, वास्तव में वही लोग बनाते है उन्हें कामचोर
और वो हमेशा कहते है ये दिल मांगे मोर
क्या बदल नहीं सकता ये सिस्टम
जिसमे अमीर और गरीब सब हो सम
कुछ सपनो में खोयी थी मै
उन सपनो में एक सपना चुना
जिसे पलकों ने बड़े प्यार से था बुना
सपने में देखि एक नारी
बड़ी सुन्दर बड़ी प्यारी
उसके काँधे पर थी बच्ची
जिसकी उम्र थी कच्ची
मैंने पूछा उस नारी से
कौन हो तुम मुझे बताओ
नहीं कुछ भी मुझसे छुपाओ
वो बोली, मै हूँ ममता की मूरत
सच में वो थी बड़ी खूबसूरत
आँख खुली तो देखा, सामने वो नहीं थी
लेकिन मेरी अलार्म घडी तो वहीं थी
जब मै देख रही थी सपना, उस माँ ने बजाय था झुनझुना
वो झुनझुना नहीं, मेरी घडी का अलार्म था
मुझे आज सुबह बहुत ज़रूरी काम था
उठकर जब होने लगी मै तैयार
याद आया मुझे उस माँ का प्यार
जब मेरी माँ ने मुझे आवाज़ दी और कहा; नाश्ता है तैयार
नाश्ता करके जब निकाली मैंने अपनी कार, माँ ने मुझे विदा करते हुए दिया प्यार
कुछ दूर क्रोसिंग पर जब देखि बत्ती लाल
रुकी वहीं पर, कुछ देख मन हुआ बेहाल
जब देखी मैंने वाही सुन्दर स्त्री मेरे कार के पास
दिल बोला मै यहीं रुक जाऊं काश
क्या बताऊँ क्या अंतर था इसमें और उसमे, जिसे देखा था मैंने कल रात सपने में
वाही ममता की मूरत, बड़ी खूबसूरत
वही नारी, बड़ी सुन्दर बड़ी प्यारी
उसके काँधे पर भी थी बच्ची, उम्र जिसकी थी कच्ची
पर उसके हाथ में झुन्झूने की जगह टूटा हुआ पात्र था
जिसमे एक पचास पैसे का सिक्का मात्र था
उस पात्र को मेरी और बढ़कर कहने लगी, अब तक कुछ खाया नहीं शाम ढलने लगी
उसके साथ थे दो और बालक, पात्र उनके भी थे चकाचक
पर उसमे नहीं था एक भी पैसा, हाय किस्मत ने रचा खेल ये कैसा
कुछ भी नहीं था उनके पास ढकने को तन
मैंने कहा, मेरे पास भी है बर्तन
अगर सुबह शाम आप उन्हें साफ़ कर देंगी
तो मै दूँगी उतना, जितना आप कहेंगी
इतना सुनते ही वो आगे बढ़ गयी, मै भी अपनी कार में चढ़ गयी
इतने में बत्ती हो गयी नारंगी, उस औरत ने बजाई सारंगी
फिर उसने शुरू किया लोगों से मांगना, मै भी वहां से हुई रवाना
शाम को घर आकर मैंने बहुत सोचा, साथ ही उन लोगों को बहुत कोसा
जो देते है उन्हें पैसे होकर उनसे बोर, वास्तव में वही लोग बनाते है उन्हें कामचोर
और वो हमेशा कहते है ये दिल मांगे मोर
क्या बदल नहीं सकता ये सिस्टम
जिसमे अमीर और गरीब सब हो सम
Tuesday, November 22, 2011
स्वर्ण रेखा
एक दिन मै कर रहा था सफ़र
बड़ी हसीं थी वो रहगुज़र
राह में मैंने देखी स्वर्ण रेखा
चौंक गए, मैंने उसे कैसे देखा?
दर असल वो था एक कीचड का नाला
सोने का रंग भी कभी होता है काला?
मैंने एक राहगीर से पूछा
क्यूं है इसका नाम स्वर्ण रेखा?
उसने बदले में पूछा
क्या तुमने इसका स्वर्ण स्वरुप नहीं देखा?
मै चकराया और रुक कर कहा लेकिन...
वो बोला आशंकित न हो, मै भी चकराया था एक दिन
जब मैंने सुना स्वर्ण रेखा है इस नाले का नाम
इक पल सोचा मुझे इससे क्या है काम
फिर तुम्हारी तरह मैंने भी एक राहगीर से पूछा
की क्यूं है स्वर्ण रेखा इस नाले का नाम?
वो बोला, मुझसे मत पूछो..पूछो इन लोगों से
जो देख रहे थे इसे साफ़ सुथरा बरसों से
पुरखों ने हमें दी थी जो साफ़ सुथरी सरिता
कई कवियों ने जिस पर लिखी थी कविता
इसी सरिता का नाम था स्वर्ण रेखा
पर हमने इसका वो स्वर्ण स्वरुप नै देखा
हमने देखा है किसानो की मवेशियों को इसमें नहाते हुए
अपनी कालिख इस नदी में मिलते हुए
धीरे धीरे इसका वर्ण काला हो गया
और ये स्वर्ण रेखा कीचड का नाला हो गया
ये पूरी घटना आज सुबह मुझे फिर याद आई
जब गर्मी से बेहाल होकर मैंने सूर्य भगवान से सिफारिश लगायी
उन्हें जल चढाते हुए मैंने कहा
महंगाई के ज़माने में एक लोटा जल चढ़ा रहा हूँ
गर्मी में लोगों के साथ मै भी कराह रहा हूँ
अब तो अपना तांडव कम करो
इस सूखी धरती पे थोडा रहम करो
सूर्य देवता मुस्कुराए और मुझे चिढाते हुए बोले
अरे मानव क्यूं मुझे पागल बानाता है
ईश्वर को गंगा की जगह नाले का पानी चढ़ाता है?
हम इक्कीसवी सदी में आ गए
कितना कुछ बदल गया है है आज में और कल में
बस एक समानता है की आज भी उसी स्वर्ण रेखा का पानी
आता है घरों के नल में
बड़ी हसीं थी वो रहगुज़र
राह में मैंने देखी स्वर्ण रेखा
चौंक गए, मैंने उसे कैसे देखा?
दर असल वो था एक कीचड का नाला
सोने का रंग भी कभी होता है काला?
मैंने एक राहगीर से पूछा
क्यूं है इसका नाम स्वर्ण रेखा?
उसने बदले में पूछा
क्या तुमने इसका स्वर्ण स्वरुप नहीं देखा?
मै चकराया और रुक कर कहा लेकिन...
वो बोला आशंकित न हो, मै भी चकराया था एक दिन
जब मैंने सुना स्वर्ण रेखा है इस नाले का नाम
इक पल सोचा मुझे इससे क्या है काम
फिर तुम्हारी तरह मैंने भी एक राहगीर से पूछा
की क्यूं है स्वर्ण रेखा इस नाले का नाम?
वो बोला, मुझसे मत पूछो..पूछो इन लोगों से
जो देख रहे थे इसे साफ़ सुथरा बरसों से
पुरखों ने हमें दी थी जो साफ़ सुथरी सरिता
कई कवियों ने जिस पर लिखी थी कविता
इसी सरिता का नाम था स्वर्ण रेखा
पर हमने इसका वो स्वर्ण स्वरुप नै देखा
हमने देखा है किसानो की मवेशियों को इसमें नहाते हुए
अपनी कालिख इस नदी में मिलते हुए
धीरे धीरे इसका वर्ण काला हो गया
और ये स्वर्ण रेखा कीचड का नाला हो गया
ये पूरी घटना आज सुबह मुझे फिर याद आई
जब गर्मी से बेहाल होकर मैंने सूर्य भगवान से सिफारिश लगायी
उन्हें जल चढाते हुए मैंने कहा
महंगाई के ज़माने में एक लोटा जल चढ़ा रहा हूँ
गर्मी में लोगों के साथ मै भी कराह रहा हूँ
अब तो अपना तांडव कम करो
इस सूखी धरती पे थोडा रहम करो
सूर्य देवता मुस्कुराए और मुझे चिढाते हुए बोले
अरे मानव क्यूं मुझे पागल बानाता है
ईश्वर को गंगा की जगह नाले का पानी चढ़ाता है?
हम इक्कीसवी सदी में आ गए
कितना कुछ बदल गया है है आज में और कल में
बस एक समानता है की आज भी उसी स्वर्ण रेखा का पानी
आता है घरों के नल में
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