मंजिल कहाँ मिलेगी क्या
पताढूंढती है उसे अर्पिता
पेड़ों पे चढ़कर खोजती हैजैसे सहारा ये
लतावैसे ही कोई अपनाखोजती है
अर्पिताउसको मिली जिसकी सजाढूँढती है वो
खताउसकी नहीं कोई खतातड़प रही क्यूंक्या
पताa सखी तू ही बताक्यूं दुखी है
अर्पिताक्यूं दुखी है arpita
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