Tuesday, November 29, 2011

बाबा

उन्हात शीतल सावली
पावसात आमचे छत्र
अश्या माझ्या बाबांना
लिहिते आज मी पत्र
उभे तिकडे पलीकडे
बाबा आमचे किती भोळे
सर्व लपविले कष्ट आपुले
पण अश्रू नी भरले डोळे
आमच्या कंटक वाटेत
आपले हाथ पसरविले
आमच्या सुखा साठी
आपले दुख विसरले
बाबा मला द्या अधिकार
पित्ररून चुकविण्या चा
वया च्या या काळात
चक्षु तुमचे बनण्या चा

Wednesday, November 23, 2011

मेरा सपना: ये दिल मांगे मोर

कल रात को सोई थी मै
कुछ सपनो में खोयी थी मै
उन सपनो में एक सपना चुना
जिसे पलकों ने बड़े प्यार से था बुना
सपने में देखि एक नारी
बड़ी सुन्दर बड़ी प्यारी
उसके काँधे पर थी बच्ची
जिसकी उम्र थी कच्ची
मैंने पूछा उस नारी से
कौन हो तुम मुझे बताओ
नहीं कुछ भी मुझसे छुपाओ
वो बोली, मै हूँ ममता की मूरत
सच में वो थी बड़ी खूबसूरत
आँख खुली तो देखा, सामने वो नहीं थी
लेकिन मेरी अलार्म घडी तो वहीं थी
जब मै देख रही थी सपना, उस माँ ने बजाय था झुनझुना
वो झुनझुना नहीं, मेरी घडी का अलार्म था
मुझे आज सुबह बहुत ज़रूरी काम था
उठकर जब होने लगी मै तैयार
याद आया मुझे उस माँ का प्यार
जब मेरी माँ ने मुझे आवाज़ दी और कहा; नाश्ता है तैयार
नाश्ता करके जब निकाली मैंने अपनी कार, माँ ने मुझे विदा करते हुए दिया प्यार
कुछ दूर क्रोसिंग पर जब देखि बत्ती लाल
रुकी वहीं पर, कुछ देख मन हुआ बेहाल
जब देखी मैंने वाही सुन्दर स्त्री मेरे कार के पास
दिल बोला मै यहीं रुक जाऊं काश
क्या बताऊँ क्या अंतर था इसमें और उसमे, जिसे देखा था मैंने कल रात सपने में
वाही ममता की मूरत, बड़ी खूबसूरत
वही नारी, बड़ी सुन्दर बड़ी प्यारी
उसके काँधे पर भी थी बच्ची, उम्र जिसकी थी कच्ची
पर उसके हाथ में झुन्झूने की जगह टूटा हुआ पात्र था
जिसमे एक पचास पैसे का सिक्का मात्र था
उस पात्र को मेरी और बढ़कर कहने लगी, अब तक कुछ खाया नहीं शाम ढलने लगी
उसके साथ थे दो और बालक, पात्र उनके भी थे चकाचक
पर उसमे नहीं था एक भी पैसा, हाय किस्मत ने रचा खेल ये कैसा
कुछ भी नहीं था उनके पास ढकने को तन
मैंने कहा, मेरे पास भी है बर्तन
अगर सुबह शाम आप उन्हें साफ़ कर देंगी
तो मै दूँगी उतना, जितना आप कहेंगी
इतना सुनते ही वो आगे बढ़ गयी, मै भी अपनी कार में चढ़ गयी
इतने में बत्ती हो गयी नारंगी, उस औरत ने बजाई सारंगी
फिर उसने शुरू किया लोगों से मांगना, मै भी वहां से हुई रवाना
शाम को घर आकर मैंने बहुत सोचा, साथ ही उन लोगों को बहुत कोसा
जो देते है उन्हें पैसे होकर उनसे बोर, वास्तव में वही लोग बनाते है उन्हें कामचोर
और वो हमेशा कहते है ये दिल मांगे मोर
क्या बदल नहीं सकता ये सिस्टम
जिसमे अमीर और गरीब सब हो सम

Tuesday, November 22, 2011

स्वर्ण रेखा

एक दिन मै कर रहा था सफ़र
बड़ी हसीं थी वो रहगुज़र
राह में मैंने देखी स्वर्ण रेखा
चौंक गए, मैंने उसे कैसे देखा?
दर असल वो था एक कीचड का नाला
सोने का रंग भी कभी होता है काला?
मैंने एक राहगीर से पूछा
क्यूं है इसका नाम स्वर्ण रेखा?
उसने बदले में पूछा
क्या तुमने इसका स्वर्ण स्वरुप नहीं देखा?
मै चकराया और रुक कर कहा लेकिन...
वो बोला आशंकित न हो, मै भी चकराया था एक दिन
जब मैंने सुना स्वर्ण रेखा है इस नाले का नाम
इक पल सोचा मुझे इससे क्या है काम
फिर तुम्हारी तरह मैंने भी एक राहगीर से पूछा
की क्यूं है स्वर्ण रेखा इस नाले का नाम?
वो बोला, मुझसे मत पूछो..पूछो इन लोगों से
जो देख रहे थे इसे साफ़ सुथरा बरसों से
पुरखों ने हमें दी थी जो साफ़ सुथरी सरिता
कई कवियों ने जिस पर लिखी थी कविता
इसी सरिता का नाम था स्वर्ण रेखा
पर हमने इसका वो स्वर्ण स्वरुप नै देखा
हमने देखा है किसानो की मवेशियों को इसमें नहाते हुए
अपनी कालिख इस नदी में मिलते हुए
धीरे धीरे इसका वर्ण काला हो गया
और ये स्वर्ण रेखा कीचड का नाला हो गया
ये पूरी घटना आज सुबह मुझे फिर याद आई
जब गर्मी से बेहाल होकर मैंने सूर्य भगवान से सिफारिश लगायी
उन्हें जल चढाते हुए मैंने कहा
महंगाई के ज़माने में एक लोटा जल चढ़ा रहा हूँ
गर्मी में लोगों के साथ मै भी कराह रहा हूँ
अब तो अपना तांडव कम करो
इस सूखी धरती पे थोडा रहम करो
सूर्य देवता मुस्कुराए और मुझे चिढाते हुए बोले
अरे मानव क्यूं मुझे पागल बानाता है
ईश्वर को गंगा की जगह नाले का पानी चढ़ाता है?
हम इक्कीसवी सदी में आ गए
कितना कुछ बदल गया है है आज में और कल में
बस एक समानता है की आज भी उसी स्वर्ण रेखा का पानी
आता है घरों के नल में

मराठी कविता

जीव माझा कोमळ
मन माझे चंचल
पंख लावूनी या काये ला
आकाशात झाली ओझल
नका थांबवू आज मला
फिरू द्या या नभात
पक्षी बनुनी लपून झयिन
आज मी आभाळात
झाड नदी आणि नर नारी
सुंदर दिसते सृष्टी सारी
आज पाहुद्या या सृष्टी ला
फिरू द्या मला दिशेत चारी
विसरून गेली आज स्वतः ला
आनंदा च्या या क्षणी मी
स्वप्नांचा साकार स्वरूप हा
सौंदर्या ची आज धनी मी

Monday, November 21, 2011

सम्बन्ध: मराठी कविता

मराठी कविता ; सम्बन्ध

हे कशे नाते कशे हे सम्बन्ध
लांब असून ही जे मनात पसरवितात सुगंध
अपल असून ही जे अपल नाही
जातान त्याला बघतो नाही करू शकत काही
लहानास कल मोठ कळी झाली हि फूलं
घेऊन कोणी गेल बघा झाडात्न त्याच मूळ
कधी न चालली दोन पावली
आई बाबांच्या विना जी बाळ
सासरी आज चालली ती मुलगी
गळ्यात घालून वरमाल
कष्ट सहून जिनी जन्म दिले
आज दिली तिला विरह वेदना
बाबांचे हि डोळे भरले
काय कराव काही सुचेना
गुंजत होती अंगणात
ती ध्वनी झाली मंद
हे कशे नाते
कशे हे संबंध
बॉस की सेक्रेटरी

बॉस की सेक्रेटरी ऑफिस में आई
सबके दिल में कुछ कुछ होने लगा
मेरा पागल दिल भी उससे ये कहने लगा
तुझे देख देख सोना
तुझे देख कर है उठना
वो बोली अबे चुप होजा
क्या तुझको है पिटना?
( जिस तरह बॉस की सेक्रेट्रिस की आदत होती है, अपने आशिक उर्फ़ कलिग से काम निकलवाने की
तो हुआ कुछ यूं...)

मैंने कहा डार्लिंग
कर लें कुछ गुफ्तगू
वो बोली मेरी हेल्प कर दो
तब तक सुस्ता लूं
खैर इश्क परवान चढ़ता गया
हम हो गए बेकार
याद आई नौकरी
जब पड़ी बॉस की मार
बॉस ने मुझे आप्शन दिया होकर मुझसे परेशान
बॉस ने पूछा; "लड़की या नौकरी?"
मै उलझ गया और बोला.....
सर! आप नहीं जानते "WHAT I फील"
बॉस बोला जल्दी बोल डाल या नो डील ??

मै Imotional हो गया
छोड़ दी मैंने नौकरी
प्यार में इतना पागल हो गया
चुन ली मैंने छौकरी
मै लड़की के पास गया तो पड़ा गाल पे चांटा
जब वो बॉस के कार में बैठकर बोली मुझको टाटा
मंजिल खोयी रास्ता खोया
जीते है मर मर के
क्या कहें वो हालत हो गयी
घाट के रहे न घर के

Saturday, November 19, 2011

I’m flying…
Today I’ve got the wings
Today I’m so light
Shining in my eyes
Today is very bright
Lem’me go I’m not lying
Today I’m flying
Let it be anything
I’m not bothered
If you wanna be with me
We’ll fly together
I wont be stopped by calling
Today I’m flying
Today the air is cool
And weather is pleasant
I wish my smile, will be permanent
You made me feel the love
Now hold my heart with kid’s glove
There’s nothing for saying
Coz today I’m flying
Sky is the limit but we’ll cross it too
Nobody will be there just me and you
Stars will welcome us in the heaven
We wont come back to the earth
That’s what I’m praying
Coz today I’m flying

Thursday, November 17, 2011

मातृत्व

सुबह सुबह सपना आया और आँख खुल गयी. तभी से कुछ बेचैनी होने लगी और मन व्यचलित था. कुछ काम करने की इच्छा नहीं थी.

"सपने में गौरी को जो देखा था, उसकी बेटी के साथ."

सुबह साढ़े छ बजे ही गौरी को फोन किया मगर नेटवर्क प्रोब्लेम की वजह से उसकी आवाज सही नहीं सुनाई दी.

खैर ऑफिस के लिए देर हो रही थी सो जल्दी से तैयार होकर ऑफिस के लिए रवाना हो गयी. पुरे रास्ते मन उसके ही बारे में सोच रहा था. कैसे मेरी और उसकी दोस्ती हुई कैसे हम बेस्ट फ्रेंड बने, हमारे आदतें, हरकतें ........ ओह कभी न भुलानेवाली यादें.

उसकी जगह आज तक कोई भी मेरी जिंदगी में नहीं ले पाया. उसकी और मेरी जिंदगी में बहुत सी बातें सामान थी. आदतें और शौक और न जाने क्या क्या...... कभी कभी तो लगता था की भगवान ने हमारी कुंडली के बीच कार्बन पेपर लगा दिया है.

यहाँ तक हमारी शादी की तारीख में भी ज्यादा अंतर नहीं था. पर एक अंतर ......... और शायद यही अंतर आज मुझे सता रहा था.

आदित्य और मेरी शादी इंटरनेट मेट्रीमोनी साईट द्वारा हुई. हमारे खानदान में मैं बहुत फॉरवर्ड लड़की थी. मरे पिताजी ने शायद मेरी काबिलियत और जिंदगी जीने के तरीके को देख कर मुझे मेरी पसंद का लड़का खुद ही देखने को कह दिया.

मैं करियर ओरिएन्तेद और लडके और लड़की को सामान मानने वाली लड़की थी, सो मुझे अपनी पसंद का लड़का धुन्धने के लिए मेट्रीमोनी साईट का सहारा लेना पड़ा.

हॉउस वाइफ बनना मुझे कतई पसंद नहीं था. तो मैंने थान लिया की अब तो घर पर नहीं बैठना है. नौकरी धुन्धना शुरू किया और शादी के तिन महीने बाद ही एक मल्तिनाशानल कंपनी में असिस्तंस मनेजर की पोस्ट पर जॉब भी लग गयी.
मेरी तरह आदित्य भी बहुत अम्बिशियास था. न्यूक्लियर फॅमिली, अच्छी जॉब, वीकएंड पार्टीज, बस और क्या चाहिए था.

एक साल में ही हमने फ्लैट और जरुरत की सुख सुविधा के सभी सामान ले लिए थे. और इन सभी साधनों के मेंटेनन्स में इतने जुट गए की DINK (Double Income no kids) policy अपनाने का फैलसा किया. और इस फैसले पर हमें कोई अफसोस नहीं था.

खैर देर शाम को जब गौरी का फोन आया की वो माँ बन गयी है, तो अचानक इतनी ख़ुशी हुई की मन में नहीं समां रही थी, फ्रेंडस, कलीग्स, सभी को बता दिया की गौरी को लड़की हुई है.

गौरी से बात होने पर जब मैंने उसे बताया की मैं ख़ुशी से इतनी पागल हो गयी की सब मुझे कह रहे थे ऐसा लग रहा हो मानो गौरी नहीं अनिषा ही माँ बन गयी है. तभी गौरी ने कहा "ये बेटी तेरी ही तो है" गौरी की उस एक बात के मन क्यों बेचैन हो गया? अचानक टीवी पे आने वाले बच्चों के साबुन का विद्यापन देखकर आँख क्यों भर आई?

क्या मेरा फैसला वाकई सही था?

क्या मेरी जिंदगी संपूर्ण है?

सभी की प्रोब्लेम्स चुटकियों में सोल्व करनेवाली अनिषा को आज उस के ही सवालों का जवाब नहीं मिल रहा!!