कल रात को सोई थी मै
कुछ सपनो में खोयी थी मै
उन सपनो में एक सपना चुना
जिसे पलकों ने बड़े प्यार से था बुना
सपने में देखि एक नारी
बड़ी सुन्दर बड़ी प्यारी
उसके काँधे पर थी बच्ची
जिसकी उम्र थी कच्ची
मैंने पूछा उस नारी से
कौन हो तुम मुझे बताओ
नहीं कुछ भी मुझसे छुपाओ
वो बोली, मै हूँ ममता की मूरत
सच में वो थी बड़ी खूबसूरत
आँख खुली तो देखा, सामने वो नहीं थी
लेकिन मेरी अलार्म घडी तो वहीं थी
जब मै देख रही थी सपना, उस माँ ने बजाय था झुनझुना
वो झुनझुना नहीं, मेरी घडी का अलार्म था
मुझे आज सुबह बहुत ज़रूरी काम था
उठकर जब होने लगी मै तैयार
याद आया मुझे उस माँ का प्यार
जब मेरी माँ ने मुझे आवाज़ दी और कहा; नाश्ता है तैयार
नाश्ता करके जब निकाली मैंने अपनी कार, माँ ने मुझे विदा करते हुए दिया प्यार
कुछ दूर क्रोसिंग पर जब देखि बत्ती लाल
रुकी वहीं पर, कुछ देख मन हुआ बेहाल
जब देखी मैंने वाही सुन्दर स्त्री मेरे कार के पास
दिल बोला मै यहीं रुक जाऊं काश
क्या बताऊँ क्या अंतर था इसमें और उसमे, जिसे देखा था मैंने कल रात सपने में
वाही ममता की मूरत, बड़ी खूबसूरत
वही नारी, बड़ी सुन्दर बड़ी प्यारी
उसके काँधे पर भी थी बच्ची, उम्र जिसकी थी कच्ची
पर उसके हाथ में झुन्झूने की जगह टूटा हुआ पात्र था
जिसमे एक पचास पैसे का सिक्का मात्र था
उस पात्र को मेरी और बढ़कर कहने लगी, अब तक कुछ खाया नहीं शाम ढलने लगी
उसके साथ थे दो और बालक, पात्र उनके भी थे चकाचक
पर उसमे नहीं था एक भी पैसा, हाय किस्मत ने रचा खेल ये कैसा
कुछ भी नहीं था उनके पास ढकने को तन
मैंने कहा, मेरे पास भी है बर्तन
अगर सुबह शाम आप उन्हें साफ़ कर देंगी
तो मै दूँगी उतना, जितना आप कहेंगी
इतना सुनते ही वो आगे बढ़ गयी, मै भी अपनी कार में चढ़ गयी
इतने में बत्ती हो गयी नारंगी, उस औरत ने बजाई सारंगी
फिर उसने शुरू किया लोगों से मांगना, मै भी वहां से हुई रवाना
शाम को घर आकर मैंने बहुत सोचा, साथ ही उन लोगों को बहुत कोसा
जो देते है उन्हें पैसे होकर उनसे बोर, वास्तव में वही लोग बनाते है उन्हें कामचोर
और वो हमेशा कहते है ये दिल मांगे मोर
क्या बदल नहीं सकता ये सिस्टम
जिसमे अमीर और गरीब सब हो सम
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