एक दिन मै कर रहा था सफ़र
बड़ी हसीं थी वो रहगुज़र
राह में मैंने देखी स्वर्ण रेखा
चौंक गए, मैंने उसे कैसे देखा?
दर असल वो था एक कीचड का नाला
सोने का रंग भी कभी होता है काला?
मैंने एक राहगीर से पूछा
क्यूं है इसका नाम स्वर्ण रेखा?
उसने बदले में पूछा
क्या तुमने इसका स्वर्ण स्वरुप नहीं देखा?
मै चकराया और रुक कर कहा लेकिन...
वो बोला आशंकित न हो, मै भी चकराया था एक दिन
जब मैंने सुना स्वर्ण रेखा है इस नाले का नाम
इक पल सोचा मुझे इससे क्या है काम
फिर तुम्हारी तरह मैंने भी एक राहगीर से पूछा
की क्यूं है स्वर्ण रेखा इस नाले का नाम?
वो बोला, मुझसे मत पूछो..पूछो इन लोगों से
जो देख रहे थे इसे साफ़ सुथरा बरसों से
पुरखों ने हमें दी थी जो साफ़ सुथरी सरिता
कई कवियों ने जिस पर लिखी थी कविता
इसी सरिता का नाम था स्वर्ण रेखा
पर हमने इसका वो स्वर्ण स्वरुप नै देखा
हमने देखा है किसानो की मवेशियों को इसमें नहाते हुए
अपनी कालिख इस नदी में मिलते हुए
धीरे धीरे इसका वर्ण काला हो गया
और ये स्वर्ण रेखा कीचड का नाला हो गया
ये पूरी घटना आज सुबह मुझे फिर याद आई
जब गर्मी से बेहाल होकर मैंने सूर्य भगवान से सिफारिश लगायी
उन्हें जल चढाते हुए मैंने कहा
महंगाई के ज़माने में एक लोटा जल चढ़ा रहा हूँ
गर्मी में लोगों के साथ मै भी कराह रहा हूँ
अब तो अपना तांडव कम करो
इस सूखी धरती पे थोडा रहम करो
सूर्य देवता मुस्कुराए और मुझे चिढाते हुए बोले
अरे मानव क्यूं मुझे पागल बानाता है
ईश्वर को गंगा की जगह नाले का पानी चढ़ाता है?
हम इक्कीसवी सदी में आ गए
कितना कुछ बदल गया है है आज में और कल में
बस एक समानता है की आज भी उसी स्वर्ण रेखा का पानी
आता है घरों के नल में
No comments:
Post a Comment